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त्वं नो॑ अ॒स्या उ॒षसो॒ व्यु॑ष्टौ॒ त्वं सूर॒ उदि॑ते बोधि गो॒पाः। जन्मे॑व॒ नित्यं॒ तन॑यं जुषस्व॒ स्तोमं॑ मे अग्ने त॒न्वा॑ सुजात॥

English Transliteration

tvaṁ no asyā uṣaso vyuṣṭau tvaṁ sūra udite bodhi gopāḥ | janmeva nityaṁ tanayaṁ juṣasva stomam me agne tanvā sujāta ||

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Pad Path

त्वम्। नः॒। अ॒स्याः। उ॒षसः॑। विऽउ॑ष्टौ। त्वम्। सूरे॑। उत्ऽइ॑ते। बो॒धि॒। गो॒पाः। जन्म॑ऽइव। नित्य॑म्। तन॑यम्। जु॒ष॒स्व॒। स्तोम॑म्। मे॒। अ॒ग्ने॒। त॒न्वा॑। सु॒ऽजा॒त॒॥

Rigveda » Mandal:3» Sukta:15» Mantra:2 | Ashtak:3» Adhyay:1» Varga:15» Mantra:2 | Mandal:3» Anuvak:2» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (सुजात) उत्तम प्रकार प्रसिद्ध (अग्ने) अग्नि के सदृश तेजस्वी (गोपाः) रक्षाकारक विद्वान् पुरुष ! (त्वम्) आप (अस्याः) इस (उषसः) प्रभात समय के (व्युष्टौ) अतिप्रकाश होने पर (नः) हम लोगों को (बोधि) जगाइये (त्वम्) आप (सूरे) सूर्य्य के (उदिते) उदय को प्राप्त होने पर हमको जगाइये (नित्यम्) अतिकाल प्राणधारी (तनयम्) पुत्र को (जन्मेव) जैसे प्रारब्ध कर्म प्रकट करता है, वैसे (मे) मेरे (तन्वा) शरीर से (स्तोमम्) विद्या सम्बन्धिनी प्रशंसा को (जुषस्व) आदर कीजिये वा ग्रहण कीजिये ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे गर्भाशय में वर्त्तमान पुरुष गर्भों के स्वरूप को नहीं जानते हैं, वैसे ही निद्रावस्थापन्न और अविद्या में लिप्त पुरुष विज्ञान से रहित होते हैं और जैसे जन्मधारण होने के अनन्तर शरीरसहित जीवात्मा प्रकट होता है, वैसे ही निद्रा को त्याग के प्रातःकाल में जागृत पुरुषों के सदृश अविद्या को त्याग के विद्या में कुशल जन प्रशंसनीय होते हैं ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह।

Anvay:

हे सुजाताऽग्ने गोपाः विद्वँस्त्वमस्या उषसो व्युष्टौ नो बोधि। त्वं सूर उदितेऽस्मान् बोधि नित्यं तनयं जन्मेव तन्वा स्तोमं जुषस्व ॥२॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (नः) अस्मान् (अस्याः) (उषसः) प्रभातवेलायाः (व्युष्टौ) विशेषेण दाहे (त्वम्) (सूरे) सूर्य्ये (उदिते) प्राप्तोदये (बोधि) बुध्यस्व (गोपाः) रक्षकः सन् (जन्मेव) यथा प्रादुर्भावि कर्म प्रकटयति तथा (नित्यम्) (तनयम्) पुत्रम् (जुषस्व) सेवस्व प्रीणीहि वा (स्तोमम्) विद्याप्रशंसाम् (मे) मम (अग्ने) पावक इव (तन्वा) शरीरेण (सुजात) सुष्ठु प्रसिद्ध ॥२॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा गर्भाशयस्थिता गर्भा न विज्ञायन्ते तथैव सुप्ता अविद्यायां स्थिताश्च विज्ञानरहिता भवन्ति। यथा जन्मानन्तरं सशरीरो प्रसिद्धिं प्राप्नोति तथैव निद्रां विहाय प्रातरुत्थिता इवाविद्यां हित्वा विद्यायां जागृता भूत्वा प्रशंसां प्राप्नुवन्ति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - भावार्थ -या मंत्रात उपमालंकार आहे. गर्भाशयात स्थित पुरुष गर्भाच्या स्वरूपाला जाणत नाहीत. तसेच निद्रावस्थेतील व अविद्यायुक्त पुरुष विज्ञानरहित असतात. जसा जन्म धारण केल्यानंतर जीवात्मा शरीरासह प्रकट होतो, तसे निद्रेचा त्याग करून प्रातःकाळी जागृत होणाऱ्या पुरुषांप्रमाणे अविद्येचा त्याग व विद्येत कुशल असलेल्या लोकांची प्रशंसा होते. ॥ २ ॥